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फोटो: निरुपम |
रात भर हथेली पसारे खड़ा रहा
खुले आसमान के नीचे अपने आँगन में
होती रही शीत-वर्षा
तब भी न भर सकी अंजुरी
न हो सका आचमन
न तर हुई हथेली
कितना नाकाफी है
यह शोभनीय अनंत आकाश
एक जरुरतमंद आदमी के लिए
एक छोटा सा कुआँ
अछोर आकाशगंगा के नीचे
चुनौती है शायद!
अक्षरौटी, 2007 के पहले अंक में प्रकाशित
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