11 July, 2011

बीते बसंत की कविता

बसंत के गीत वो गाएं
जिनके कंधे पर
पसरी हो सुगंध की बेल

मैं तक रहा हूँ राह
फसल के सकुशल
घर आने की

दो कोमल खुली बाँहों की पुकार
मैं  सुन नहीं पाता
मेरे आसरे जीता है पूरा एक कुनबा

सच कहता हूँ
बसंत की अगवानी में
मैंने बोया ही नहीं
गेंदे का फूल