01 July, 2010

जिसे हम रचते हैं

जिसे हम रचते हैं
वह न सुख होता है न दुःख

जो हमें रचता है
वह थोड़ा सुख होता है
थोड़ा दुःख

इनके ही रचे
हमारे स्वप्नों में आते हैं रस-गंध
कल्पनाओं में आते हैं रंग-रूप
शब्दों में ढलते हैं तेवर...

जेठ की बारिश और भादो की धूप
जैसे होते हैं सुख या दुःख
अंतर्गामी

इसलिए हम कर नहीं सकते
ऋतु-चक्र के बदलने का इंतज़ार
अविरल है वह
जो रच रहे हैं हम...